नई दिल्ली 26 जून : 17वीं लोक सभा के निवर्तमान अध्यक्ष श्री ओम बिरला को आज 18 वीं लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में पुनः चुना गया। इस अवसर पर प्रोटेम स्पीकर श्री भर्तृहरि महताब ने चुनाव प्रक्रिया का संचालन किया। प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अध्यक्ष के चुनाव के लिए प्रस्ताव पेश किया, जिसका रक्षा मंत्री श्री राज नाथ सिंह ने समर्थन किया। कई केंद्रीय मंत्रियों, पार्टियों के नेताओं और अन्य संसद सदस्यों ने भी श्री बिरला के पुन: चुनाव के लिए एक प्रस्ताव पेश किए। श्री अरविंद गणपत सावंत, सांसद ने लोक सभा अध्यक्ष के रूप में श्री के. सुरेश, सांसद के चुनाव के लिए प्रस्ताव पेश किया, प्रस्ताव का समर्थन श्री एन.के. प्रेमचंद्रन, सांसद ने किया।
प्रस्ताव को प्रोटेम स्पीकर श्री भर्तृहरि महताब द्वारा मतदान के लिए रखा गया और मतदान के पश्चात् श्री ओम बिरला को 18 वीं लोक सभा का अध्यक्ष घोषित किया गया। तत्पश्चात, श्री महताब ने श्री बिरला को अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने और सदन की कार्यवाही संचालित करने के लिए आमंत्रित किया। सदन के नेता, प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सदन को संबोधित किया और श्री बिरला को उनकी ऐतिहासिक जीत पर बधाई दी।
इस अवसर पर लोक सभा में विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी, केंद्रीय मंत्रियों, दलों के नेताओं और अन्य सांसदों ने श्री बिरला को लोक सभा अध्यक्ष के रूप में उनके ऐतिहासिक पुनर्निर्वाचन के लिए बधाई दी।
इस अवसर पर बोलते हुए, श्री बिरला ने प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, सदन में दलों के नेताओं और संसद सदस्यों को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।
श्री बिरला ने 18वीं लोक सभा के लिये दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के उत्सव (चुनाव) में सक्रियता से भागीदारी के लिए देश की जनता के प्रति सदन की ओर से आभार व्यक्त किया। निर्वाचन आयोग के निष्पक्ष, निर्विवाद एवं पारदर्शी कार्य के लिए भी उन्होंने साधुवाद दिया। प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार NDA सरकार के गठन का उल्लेख करते हुए श्री बिरला ने कहा कि पिछले एक दशक में जनता की सरकार के प्रति अपेक्षाएं, आशाएं और आकांक्षाएं बढ़ी हैं और इसलिए जनप्रतिनिधि का दायित्व बन जाता है कि वे उनकी अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को प्रभावी तरीके से पूर्ण करने के लिए सामूहिक प्रयास करें।
श्री बिरला ने सभी सदस्यों से आग्रह किया कि 18वीं लोक सभा के लिए एक नया विज़न और संकल्प होना चाहिए। उन्होंने आव्हान किया की कि 18वीं लोक सभा रचनात्मक चिंतन एवं नूतन विचारों की सभा हो, जो उच्च कोटि की संसदीय परंपरा और मर्यादा स्थापित करने वाली सभा हो। श्री बिरला आगे कहा कि सदन में पक्ष–प्रतिपक्ष की मर्यादित सहमति–असहमति की अभिव्यक्ति हो। उन्होंने आगे कहा कि सदन का लक्ष्य विकसित भारत के संकल्प को इच्छाशक्ति के साथ पूर्ण करना होना चाहिए।
18 वी लोक सभा में 281 पहली बार चुने गए सांसदों की उपस्थिति पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए श्री बिरला ने उनका सदन में अभिनंदन किया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि पहली बार निर्वाचित सदस्य, सदन के नियमों और परंपराओं का गहन अध्ययन करेंगे, और अपने वरिष्ठ सहयोगियों के अनुभवों और मार्गदर्शन का लाभ उठाते हुए श्रेष्ठ संसदीय परंपराओं को समृद्ध करेंगे।
श्री बिरला ने प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का आभार व्यक्त किया कि उनके मार्गदर्शन में संविधान दिवस मनाने की श्रेष्ठ परंपरा की शुरुआत की है। उन्होंने आगे कहा कि मोदीजी के मार्गदर्शन में ‘नो योर कॉन्स्टिट्यूशन’ अभियान का आरंभ हुआ जिससे देश की युवा पीढ़ी अपने संवैधानिक कर्तव्यों और दायित्वों को समझते हुए देश के विकास में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दे सके।
सदन के कार्यकरण के विषय में बोलते हुए श्री बिरला ने कहा कि लोकतंत्र में संसद सदस्य अलग अलग विचारधारा से चुनकर आते हैं, और उनका वैचारिक विरोध हो सकता है, लेकिन सदन में अभिव्यक्ति मर्यादित होनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि सरकार की नीतियों एवं निर्णयों की सकारात्मक आलोचना हो, लेकिन पूर्व-नियोजित गतिरोध नहीं होना चाहिए। संसद में विरोध और सड़क पर विरोध में अंतर तो होना ही चाहिए। श्री बिरला ने कहा कि संसद में सदस्यों का आचरण शालीन हो, स्वस्थ वातावरण में सार्थक संवाद हो। उन्होंने आगे कहा कि सदन को चलाने के लिए सभी पक्षों की सहमति और सबका सहयोग जरूरी है।
26 जून 1975 में लगे आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर श्री बिरला ने सदन की तरफ से आपातकाल लगाने के निर्णय का उल्लेख किया। श्री बिरला ने उन सभी लोगों के संकल्प शक्ति की सराहना की जिन्होंने आपातकाल का पुरजोर विरोध किया, संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा की।
भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के दिन को काला अध्याय बताते हुए श्री बिरला ने कहा कि इस दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहेब द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया। श्री बिरला कहा कि विश्व में भारत की पहचान लोकतंत्र की जननी के रूप में है जहां सदैव लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रोत्साहित किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि ऐसे भारत पर श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोपी गई। भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को भूला दिया गया और अभिव्यक्ति की आजादी को का गला घोटा गया। उन्होंने आगे कहा कि इमरजेंसी के दौरान नागरिकों के अधिकार नष्ट किए गए और उनकी आजादी छीन ली गई। यह वह दौर था जब विपक्ष के नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया और पूरे देश को जेल खाना बना दिया गया।
इमरजेंसी के विषय में बात करते हुए श्री बिरला ने कहा कि उस समय कि तानाशाह सरकार द्वारा ने मीडिया पर अनेक पाबंदियां लगा दी गई और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगा दिया था। इमरजेंसी का वह समय हमारे देश के इतिहास में अन्याय का कालखण्ड था। श्री बिरला ने कहा कि आपातकाल लगाने के बाद उसे समय की कांग्रेस सरकार ने कई ऐसे निर्णय किए जिन्होंने संविधान की भावना को कुचलने का काम किया। उस समय पर लिए गए कई निर्णयों का उल्लेख करते हुए श्री बिरला ने कहा कि उन सभी निर्णयों का लक्ष्य था कि सारी शक्तियां एक व्यक्ति के पास आ जाए। श्री बिरला ने आगे कहा कि आपातकाल के दौरान तत्कालीन सरकार ने कोशिश की कि न्यायपालिका पर नियंत्रण स्थपित कर संविधान के मूल सिद्धांत खत्म किए जा सके। श्री बिरला ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री इंदिरा गांधी के कमिटेड ब्यूरोक्रेसी और कमिटेड ज्यूडिशरी की धारणा को लोकतंत्र विरोधी रवैया बताया।
श्री बिरला ने कहा कि आपातकाल के समय में तत्कालीन सरकार ने गरीबों और वंचितों को तबाह कर दिया। उन्होंने इमरजेंसी के दौरान लोगों पर सरकार द्वारा जबरन थोपी गई अनिवार्य नसबंदी और अतिक्रमण हटाने की क्रूर नीतियों का उल्लेख किया। श्री बिरला ने कहा कि आपातकाल एक काला खंड था जिसने संविधान के सिद्धांतों, संघीय ढांचे और न्यायिक स्वतंत्रता के महत्व को कम करने की कोशिश की। उन्होंने आगे कहा कि आपातकाल हमे यह याद दिलाता है कि संविधान और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा आवश्यक है।
श्री बिरला ने विश्वास व्यक्त किया कि 18वीं लोक सभा बाबा साहेब द्वारा निर्मित संविधान को बनाए रखने और इसकी रक्षा करने और संरक्षित रखने की अपनी प्रतिबद्धता को कायम रखेगी। श्री बिरला ने आगे कहा कि 18 वी लोक सभा देश में कानून का शासन और शक्तियों के विकेंद्रीकरण के लिए प्रतिबद्ध रहेगी। श्री बिरला ने संवैधानिक संस्थाओं में भारत के लोगों कि आस्था और अभूतपूर्व संघर्ष को याद किया और कहा कि इस के कारण आपातकाल का अंत हुआ और एक बार फिर संवैधानिक शासन की स्थापना हुई।
श्री बिरला ने कहा कि आपातकाल के समय में सरकारी प्रताड़ना के चलते अनगिनत लोगों को यातनाएं सहनी पड़ी और उनके परिवारों को असीमित कष्ट उठाना पड़ा, जिसने भारत के कई नागरिकों का जीवन तबाह कर दिया। सदन ने आपातकाल में आहत हुए देश के नागरिकों को स्मरण करते हुए 2 मिनट का मौन रखा।