जन प्रतिनिधियों को विधानमंडल के साथ-साथ अपने दैनिक जीवन में भी अनुकरणीय आचरण बनाए रखना चाहिए: प्रधान मंत्री मोदी

मुंबई; 27 जनवरी : भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने वीडियो संदेश में पीठासीन अधिकारियों को शुभकामनाएं दीं और विश्वास व्यक्त किया कि सम्मेलन के अच्छे परिणाम निकलेंगे। प्रधान मंत्री ने संविधान सभा के अपार योगदान का स्मरण करते हुए इस बात का उल्लेख किया कि इतनी विविधता होते हुए भी संविधान सभा के सदस्यों ने अनेक विचारों को समाहित करते हुए भारत का संविधान तैयार किया ।
प्रधान मंत्री ने पीठासीन अधिकारियों से कहा कि हमें उनके कार्यों और उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए भावी पीढ़ियों के मार्गदर्शन के लिए एक धरोहर छोड़नी चाहिए । उन्होंने पीठासीन अधिकारी मंच का ध्यान भारत के लोगों की अपने प्रतिनिधियों से बढ़ती अपेक्षाओं और सार्वजनिक क्षेत्र में उनके आचरण की कड़ी जांच की ओर भी दिलाया । उन्होंने जन प्रतिनिधियों से विधानमंडलों के साथ-साथ अपने दैनिक जीवन में अनुकरणीय आचरण बनाए रखने का आह्वान किया क्योंकि इससे पूरे देश के संसदीय लोकतंत्र पर प्रभाव पड़ता है।

श्री मोदी ने पीठासीन अधिकारियों का ध्यान विधि निर्माण और विशेष रूप से अप्रचलित कानूनों को निरस्त करने की ओर भी आकर्षित किया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि ये कानून व्यवस्था पर ऐसा बोझ हैं जो शासन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं । इस बात का उल्लेख करते हुए कि पिछले 10 वर्षों में केंद्र सरकार ने लगभग 2000 अप्रचलित कानूनों को निरस्त कर दिया है, प्रधान मंत्री ने प्रतिनिधियों से अपने राज्यों के कानूनों की बारीकी से जांच करने और ऐसे कानूनों को निरस्त करने का आह्वान किया जिनसे शासन के सुचारू संचालन में बाधा आती हैं। उन्होंने हाल ही में पारित ऐतिहासिक नारी शक्ति वंदन कानून की ओर भी ध्यान आकर्षित करते हुए पीठासीन अधिकारियों से अमृत काल के दौरान ऐसे प्रयासों को मजबूत करने की दिशा में काम करने का आग्रह किया। प्रधान मंत्री ने प्रतिनिधियों से भारत के युवाओं को विधायी प्रक्रियाओं में भाग लेने, कानून बनाने में समान भागीदार बनने और एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण में भागीदार बनने के लिए प्रोत्साहित करने का भी आह्वान किया।

सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए, लोक सभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने विधानमंडलों में अनुशासनहीनता, कार्यवाही में व्यवधान और असंसदीय आचरण की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इससे विधानमंडलों की विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है। श्री बिरला ने यह भी कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में असहमति व्यक्त करने के लिए गुंजाइश है, इसलिए व्यवधान के माध्यम से विरोध और असहमति नहीं जताई जानी चाहिए। श्री बिरला ने कहा कि विधानमंडलों की प्रतिष्ठा और गरिमा को बनाए रखना और विधानमंडलों में मर्यादापूर्ण आचरण को बनाए रखना सर्वोपरि है, लेकिन यह चिंता का विषय है कि इन मुद्दों पर आम सहमति होने के बावजूद, हम अभी तक सदन के सुचारू कामकाज के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को लागू नहीं कर पाए हैं । इस बात पर जोर देते हुए कि जन प्रतिनिधियों का आचरण संसदीय मर्यादाओं के अनुरूप होना चाहिए, श्री बिरला ने सदस्यों से सदन में अपना समय रचनात्मक कार्यों में लगाने का आग्रह किया। इस संबंध में, श्री बिरला ने सुझाव दिया कि यदि आवश्यक हो तो नियमों में बदलाव करते हुए ठोस और निश्चित कार्य योजना तैयार की जानी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विधानमंडल बिना किसी व्यवधान के कार्य करें।

नवाचार पर जोर देते हुए श्री बिरला ने सुझाव दिया कि विधानमंडलों में काम करने के नए तौर-तरीकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि लोकतांत्रिक संस्थाएं कार्यपालिका की निगरानी की अपनी जिम्मेदारी को बेहतर ढंग से निभा सकें और लोगों का इन संस्थाओं में विश्वास बढ़े। सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में राज्य विधानमंडलों द्वारा किए जा रहे अच्छे कार्यों पर सदन में चर्चा की जानी चाहिए, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा किया जाना चाहिए क्योंकि ऐसे उपायों से जनता के बीच विधानमंडलों और जन प्रतिनिधियों दोनों की विश्वसनीयता बढ़ेगी। विधायी कार्यों में प्रौद्योगिकी के उपयोग पर जोर देते हुए श्री बिरला ने सुझाव दिया कि जन प्रतिनिधियों को प्रौद्योगिकी में दक्ष होना चाहिए और जनता से जुड़ने के लिए इसका उपयोग करना चाहिए। श्री बिरला ने कहा कि प्रौद्योगिकी के अधिक से अधिक उपयोग से सदस्यों की दक्षता में वृद्धि होगी। श्री बिरला ने यह भी कहा कि विधानमंडल में सदस्यों की क्षमता निर्माण को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और सदस्यों के लिए विधानमंडल के नियमों, विधायी साधनों और प्रौद्योगिकी के उपयोग के बारे में नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। श्री बिरला ने राज्य विधानमंडलों से समयबद्ध तरीके से वाद-विवाद के डिजिटलीकरण का आग्रह किया ताकि ‘एक राष्ट्र, एक विधायी मंच की संकल्पना को शीघ्र ही वास्तविक रूप दिया जा सके।’

लोकतंत्र में संसदीय समितियों की भूमिका का उल्लेख करते हुए, श्री बिरला ने कहा कि संसदीय समितियाँ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कानूनों और नीतियों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्होंने कहा, संसदीय समितियां वास्तव में ‘मिनी संसद’ हैं और वे संसद की ओर से इन कानूनों, नीतियों और कार्यक्रमों की समीक्षा करती हैं और उन्हें जनता के लिए अधिक उपयोगी बनाती हैं। श्री बिरला ने सुझाव दिया कि संसदीय समितियाँ सहयोग और समावेशिता की भावना से काम करें, सभी पक्षों के सामूहिक ज्ञान का उपयोग करते हुए रचनात्मक चर्चा संवाद करें और परिणाममूलक बनें । श्री बिरला ने इस बात का उल्लेख भी किया कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने वाली समितियों की रिपोर्टों को हाईलाइट किया जाना चाहिए।

महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री श्री एकनाथ शिंदे ने 21 वर्षों के बाद महाराष्ट्र को एआईपीओसी की मेजबानी का अवसर मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त की। श्री शिंदे ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उन्होंने यह भी कहा कि कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिका के साथ-साथ सबसे बड़ी भूमिका विधायिका की है। विधायी प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए श्री शिंदे ने इस बात पर जोर दिया कि विधायकों को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी संभव प्रयास करने चाहिए कि विधानमंडलों में होने वाली चर्चा, लिए गए निर्णय और पारित अधिनियम आम आदमी के हित में हों। उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक नागरिक की गरिमा को बनाए रखना एक संवैधानिक अनिवार्यता है और जन प्रतिनिधियों को इस आदर्श के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध रहना चाहिए। श्री शिंदे ने यह भी कहा कि संविधान के प्रहरी के रूप में विधानमंडल को मजबूत करने में पीठासीन अधिकारियों की भूमिका महत्वपूर्ण है।

इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए, राज्य सभा के उपसभापति, श्री हरिवंश ने कहा कि 1921 से, AIPOC विधानमंडलों के कामकाज में सुधार करने और उनकी दक्षता बढ़ाने के लिए सबसे प्रभावी मंच रहा है। श्री हरिवंश ने कहा कि इस सम्मेलन के लिए चुने गए विषय वर्तमान संदर्भ में बहुत प्रासंगिक हैं। यह टिप्पणी करते हुए कि आज विधानमंडलों में अव्यवस्था आम बात हो गई है, श्री हरिवंश ने कहा कि अनुशासन और शालीनता का मुद्दा वर्षों से पीठासीन अधिकारियों के लिए एक बड़ी चुनौती रही है । प्रश्नकाल और शून्यकाल में बाधा डालना , सदन के समक्ष लाए जाने वाले विधेयकों पर पर्याप्त चर्चा न होना लोकतंत्र और देश के लिए गंभीर चिंता का विषय है। श्री हरिवंश ने यह भी कहा कि व्यवधान के कारण विधानमंडल अपनी जिम्मेदारियां ठीक से नहीं निभा पा रहे हैं ।

सम्मेलन में पीठासीन अधिकारियों का स्वागत करते हुए, महाराष्ट्र विधान सभा के अध्यक्ष, एडवोकेट राहुल नार्वेकर ने कहा कि 84वां एआईपीओसी कई मायनों में महत्वपूर्ण है, सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि यह सम्मेलन अमृत काल के ऐसे समय में हो रहा है जो भारत के महाशक्ति बनने की महत्वपूर्ण अवधि है । उन्होंने यह भी कहा कि एआईपीओसी जैसे मंच लोकतंत्र को मजबूत करने के साथ-साथ लोकतांत्रिक संस्थाओं और लोकतांत्रिक प्रथाओं में लोगों के विश्वास को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। श्री नार्वेकर ने यह भी कहा कि उन्हें इस सम्मेलन से बहुत उम्मीदें हैं और वह विचार-विमर्श और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए तत्पर हैं ताकि सभी प्रतिनिधि अपने-अपने राज्यों में वापस जाकर इन प्रयासों को क्रियान्वित कर सकें। उन्होंने लोकतंत्र के तीन स्तंभों के कामकाज को बढ़ाने के लिए इनके बीच तालमेल की आवश्यकता की बात भी की। श्री नार्वेकर ने कहा कि कई चुनौतीपूर्ण क्षणों के बावजूद, श्री बिरला द्वारा लोक सभा की कार्यवाही के कुशलतापूर्वक संचालन से अन्य पीठासीन अधिकारियों को अपने अपने सदनों के कामकाज को संचालित करने के लिए निरंतर मार्गदर्शन और प्रेरणा मिलती है।

इस अवसर पर महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष, श्री नरहरि सीताराम झिरवाल और महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता, श्री अंबादास दानवे ने भी विशिष्ट सभा को संबोधित किया ।

महाराष्ट्र विधान परिषद की उप सभापति, डॉ. नीलम गोरहे ने धन्यवाद ज्ञापित दिया।
84वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन का एजेंडा इस प्रकार है:

(i) लोकतांत्रिक संस्थाओं में लोगों के विश्वास को मजबूत करने के लिए – संसद और राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के विधानमंडलों में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने की आवश्यकता; और
(ii) समिति व्यवस्था को अधिक उद्देश्यपूर्ण एवं प्रभावी कैसे बनाया जाये।

84वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन से पहले, लोक सभा अध्यक्ष , श्री ओम बिरला ने मुंबई के महाराष्ट्र विधानमंडल परिसर में एआईपीओसी की स्थायी समिति की अध्यक्षता की।

एआईपीओसी के भाग के रूप में, भारत के विधायी निकायों के सचिवों का 60वां सम्मेलन आज आयोजित किया गया जिसमें ‘विधानमंडल में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग’ विषय पर चर्चा की गई । लोक सभा के महासचिव श्री उत्पल कुमार सिंह ने सत्र की अध्यक्षता की।

इस अवसर पर, श्री सिंह ने भारतीय इतिहास में 2023 के महत्व के बारे में बात करते हुए भारत के नए संसद भवन के लोकार्पण और भारतीय संसद द्वारा जी20 देशों की संसदों के अध्यक्षों के शिखर सम्मेलन की मेजबानी के बारे में बताया , जिसका समापन सर्वसम्मति से घोषणा के साथ हुआ था । उन्होंने लोक सभा में कामकाज में हो रही नवीनतम प्रगति पर भी चर्चा की, जैसे भाषांतरण के लिए एआई का उपयोग और एआई पर आधारित लैंग्वेज लोकलाइज़ेशन परियोजना, जो वर्तमान में लोक सभा में कार्यान्वयन के उन्नत चरण में है। श्री सिंह ने सम्मेलन के आयोजन और पीठासीन अधिकारियों, सचिवों और अन्य विशिष्टजनों के आतिथ्य सत्कार के लिए महाराष्ट्र विधानमंडल को धन्यवाद दिया।

इस अवसर पर राज्य सभा के महासचिव, श्री पी सी मोदी और महाराष्ट्र विधान सभा के सचिव ने भी बैठक को संबोधित किया ।