शिमला: भारत के विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन, जिसका उदघाटन 17 नवंबर 2021 को शिमला में हुआ था, आज सम्पन्न हो गया ।
समापन समारोह में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल, श्री राजेंद्र विस्वनाथ अर्लेकर ; लोक सभा अध्यक्ष,श्री ओम बिरला; केंद्रीय सूचना और प्रसारण तथा खेल एवं युवा मामलों के मंत्री श्री अनुराग सिंह ठाकुर; राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश; हिमाचल प्रदेश की विधान सभा के अध्यक्ष श्री विपिन सिंह परमार और अन्य विशिष्टजन शामिल हुए ।
सम्मेलन में कुल 26 पीठासीन अधिकारियों और 20 विधानमंडलों के सचिवगण ने महत्त्वपूर्ण अनुभव और सुझाव साझा किये।
प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल, श्री राजेंद्र विस्वनाथ अर्लेकर ने इस अवसर पर कहा कि पीठासीन अधिकारियों का 82वा सम्मेलन हिमाचल विधानसभा के लिए यह एक स्वर्णिम अध्याय है क्योंकि लोकतंत्र का यह मंदिर 100 साल बाद पुनः इन ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी बना है I उन्होंने कहा कि 1921 में अपनी स्थापना के बाद से, दशकों से, पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन एक जीवंत और प्रभावी मंच के रूप में विकसित हुआ है, जो हमारे विधान मंडलों की बदलती जरूरतों और हमारी संसदीय राजनीति के उभरते आयामों के साथ तालमेल बिठाता है । उन्होंने ये भी कहा की लोगों का हमारी संसदीय और विधायी निकायों में अटूट विष्वास रहा है I यह हमारा कर्तव्य है कि वाद-विवाद सार्थक हो, विकासात्मक हो और समाज के उस वर्ग की चिंता करता हो जो आज भी बुनियासदी सुविधाओें से वंचित है। इसके लिए, पीठासीन अधिकारियों की जिम्मेदारी शायद कहीं अधिक है। वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सदन के कामकाज की सुचारू और व्यवस्थित संचालन को सुगम बनाता है। निर्धारित नियमों के भीतर सदस्यों को सामयिक महत्व के मुद्दों को उठाने में सक्षम बनाना, सभी वर्गों को कार्यवाही में सार्थक रूप से भाग लेने देना है।
लोक सभा अध्यक्ष,श्री ओम बिरला ने अपने समापन भाषण में ज़ोर देकर कहा कि विधान मंडलों के सदन निर्बाध रूप से चलने चाहिए; उन्होंने इस बात पर बल दिया की सदन में बढ़ती अनुशासनहीनता, व्यवधान, हंगामे की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकना होगा, तथा इसके लिए आवश्यकता होने पर पीठासीन अधिकारी सभी राजनैतिक दलों के नेताओं से चर्चा करेंगे कि सदन की कार्यवाही निर्बाध रूप से चले। श्री बिरला ने सदन की नियम प्रक्रियाओं के विषय में कहा कि नियम प्रक्रियाएं एक जैसी बने और उन नियम प्रक्रियाओं से सदन सुचारू रूप से, बिना किसी व्यवधान के चले, और इसके लिए विधानसभाओं में अच्छी परंपराएं और परिपाटियाँ स्थापित करने की आवश्यकता है, जिससे सभी सदनों की गरिमा और प्रतिष्ठा और भी बढे। उन्होंने आगे कहा की सदन में जनप्रतिनिधियों की प्रतिस्पर्धा इस बात की नहीं होनी चाहिए कि किसने कितनी बार व्यवधान पैदा किए, शोरगुल किया, कितनी बार सदन में तख्ती लेकर आए; प्रतिस्पर्धा इस बात पर होनी चाहिए कि किसने अपने क्षेत्र में कैसे नवाचार किये, और लोक कल्याण की दिशा में कितना योगदान दिया।
बदलते परिप्रेक्ष्य में सूचना प्रौद्योगिकी के सन्दर्भ में श्री बिरला ने विधान मंडलों की कार्यवाही को आधुनिक तकनीक से युक्त करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आह्वाहन पर निश्चित रूप से ‘वन नेशन वन लेजिस्लेटिव प्लेटफार्म’ को एक तय समय सीमा के भीतर तैयार करने की बात की।
श्री बिरला ने विधान मंडलों की बैठकों की संख्या को बढ़ाने के लिए एक स्पष्ट कार्य योजना बनाकर माननीय सदस्यों को अधिकतम समय और अवसर उपलब्ध करा कर जनप्रतिनिधियों को प्रदेश और देश के प्रमुख मुद्दों पर व्यापक चर्चा संवाद करने का आह्वाहन किया। श्री बिरला ने आगे कहा की संसदीय समितियों के कार्यकरण में भी वर्तमान समय के अनुसार व्यापक परिवर्तन करने की आवश्यकता है।
अपने सम्बोधन के अंत में श्री बिरला ने कहा कि जब देश की आजादी के सौ साल पूरे हों तो पीठासीन अधिकारियों के इस शताब्दी वर्ष के सम्मेलन को एक मील के पत्थर के रूप में याद किया जाये जब विधान मंडलों की भूमिका को एक नयी दिशा दी गई, विधायिकाओं की कार्य प्रणाली में व्यापक परिवर्तन का सूत्रपात किया गया तथा एक अधिक सशक्त, जवाबदेह और पारदर्शी विधायी संस्था के लिए कार्य योजना बनायी गई जो जनता की बढ़ती आशाओं, अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में समर्थ हो। उन्होंने आज़ादी के अमृत महोत्सव के विषय में कहा कि आज देश की आजादी के 75 वर्ष की यात्रा पूरी हो रही है जहां देश में व्यापक परिवर्तन आए हैं, विकास की यात्रा में अब नये बदलाव आये हैं और बदलते परिप्रेक्ष्य में विधान मंडलों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गयी है।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण तथा युवा मामले और खेल मंत्री, श्री अनुराग सिंह ठाकुर ने कहा कि भारत में संसदीय प्रणाली की शुरुआत शिमला से हुई । उन्होंने यह भी कहा कि लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पीठासीन अधिकारियों की भूमिका और जिम्मेदारी पर निरंतर चर्चा की आवश्यकता है। इस बात का उल्लेख करते हुए कि पीठासीन अधिकारी नए सदस्य को संरक्षण देते हुए उन्हें सदन में हो रहे वाद-विवाद में सार्थक ढंग से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते है, श्री अनुराग ठाकुर ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि श्री ओम बिरला नए सदस्यों को सदन में बोलने के लिए प्रोत्साहित करके इस परंपरा का पालन कर रहे हैं।
सदन में व्यवधान के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि सदन में हंगामा करने और कागज फाड़ने से विधायी निकायों की गरिमा कम होती है । उन्होंने वाद-विवाद की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि इस दिशा में उचित शोध और इंटर्नशिप कार्यक्रमों की व्यवस्था पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में छात्रों और पंचायती राज संस्थानों के प्रतिनिधियों सहित विभिन्न हितधारकों को शामिल करने के लिए राज्यों में विधायी सप्ताह मनाने की संभावना पर विचार किया जा सकता है।श्री ठाकुर ने सदन की कार्यवाही में पारदर्शिता लाने और विकास के लाभों को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किए जाने पर ज़ोर किया। उन्होंने यह भी कहा कि युवा नागरिकों में जागरूकता बढ़ाने और देश में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए विधानमंडलों को महत्वपूर्ण वाद-विवाद और अन्य दस्तावेजों को एकत्र, संग्रहीत, सृजित और संप्रेषित करना चाहिए।
राज्य सभा के उपसभापति, श्री हरिवंश ने आशा व्यक्त की कि 82वें एआईपीओसी के दौरान तैयार किया गया रोडमैप अगले 100 वर्षों तक पीठासीन अधिकारियों का मार्गदर्शन करता रहेगा। उन्होंने कहा कि आज के सम्मेलन के दौरान अधिकांश पीठासीन अधिकारियों ने महसूस किया कि विधानमंडलों के समक्ष आज ऐसी स्थितियाँ बन गई हैं जिनमें उन पर उभरती चुनौतियों और वास्तविकताओं का सामना करने के लिए नए तौर-तरीके खोजने और उन पर विचार करने की जिम्मेदारी आ गई है। श्री हरिवंश ने इस बात पर जोर दिया कि यदि विधायक माननीय प्रधान मंत्री द्वारा दिए गए कर्तव्य के मंत्र को चरितार्थ कर सकें, तो इससे उन्हें लोगों की बेहतर सेवा करने में मदद मिलेगी।
हिमाचल प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष, श्री विपिन सिंह परमार ने अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन (एआईपीओसी) के शताब्दी समारोह में भाग लेने के लिए लोक सभा अध्यक्ष, श्री ओम बिरला का आभार व्यक्त किया और कहा कि 82वें सम्मेलन के दौरान हुई चर्चा इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखी जाएगी। इस बात का उल्लेख करते हुए कि श्री विट्ठलभाई पटेल सभा में चर्चा के दौरान सभा की गरिमा बनाए रखने पर जोर दिया करते थे, उन्होंने कहा कि सभी विधायकों को उस परंपरा का पालन करना चाहिए। श्री परमार ने हिमाचल प्रदेश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में हिमाचल प्रदेश विधान सभा के पूर्व अध्यक्षों और प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के योगदान का भी उल्लेख किया ।
हिमाचल प्रदेश विधान सभा के उपाध्यक्ष, श्री हंस राज ने धन्यवाद ज्ञापित दिया।
पीठासीन अधिकारियों का 82वां अखिल भारतीय सम्मेलन 17 और 18 नवंबर 2021 को शिमला में आयोजित किया गया। माननीय प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी कार्यक्रम में शामिल हुए और कल, यानी 17 नवंबर को, सम्मलेन का उद्घाटन किया । सम्मेलन में “शताब्दी यात्रा – मूल्यांकन और भविष्य के लिए कार्य योजना; और संविधान, सभा और जनता के प्रति पीठासीन अधिकारियों की जिम्मेदारी।” विषय पर दो दिन गहन चर्चा हुई ।
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल, श्री राजेंद्र विस्वनाथ अर्लेकर ; हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, श्री जयराम ठाकुर; राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश; केंद्रीय सूचना और प्रसारण तथा खेल एवं युवा मामलों के मंत्री श्री अनुराग ठाकुर; हिमाचल प्रदेश की विधान सभा के सभापति श्री विपिन सिंह परमार और अन्य विशिष्टजन सम्मलेन में शामिल हुए।
2021 को पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के शताब्दी वर्ष के रूप में भी मनाया जा रहा है। सम्मेलन की शुरूआत वर्ष1921 में हुई थी । 82वां अखिल भारतीय सम्मेलन लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने हेतु नए अनुभवों और विचारों को साझा करने के लिए एक उपयुक्तमंच सिद्ध हुआ है।
हिमाचल प्रदेश विधान सभा में लोकसभा सचिवालय द्वारा “1921 से 2021 तक अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन की यात्रा” पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। प्रदर्शनी पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलनों के सौ साल के इतिहास को दर्शाती है ।