बंगलुरु: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आज कर्नाटक विधान परिषद और विधान सभा सदस्यों को विधान सभा चैम्बर में संबोधित करते हुए कहाकि संसदीय लोकतंत्र की नींव निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की जनता के प्रति जवाबदेही पर टिकी हुई है. उन्होंने कहा कि संसद एवं विधान मंडलों की प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जनता के प्रति संवेदनशील रहें तथा उनकी आशाओं और अपेक्षाओं को इन विधान मंडलों के माध्यम से पूर्ण कर सके। सशक्त लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है कि इस प्रणाली में जनता का विश्वास बरकरार रहे। यह तभी हो सकता है जब जनप्रतिनिधि अपने आचरण से आदर्श प्रस्तुत करे जिससे लोकतंत्र में आस्था बनी रहे ।
श्री बिरला ने जनप्रतिनिधियो का आह्वान किया कि ‘यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम जो कानून बना रहे हैं, उन पर व्यापक चर्चा हो, संवाद हो और विधायकों की अधिक सक्रिय भागीदारी हो ताकि जो कानून बने, उस पर कोई सवाल न उठे।’ इस विषय में विधायकों की क्षमता और दक्षता को बढ़ाने पर जोर देते हुए उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि कानून बनाते समय जितनी व्यापक चर्चा और संवाद विधान मंडलों में होनी चाहिए, माननीय सदस्यों की जितनी भागीदारी होनी चाहिए, उतनी व्यापक सहभागिता और चर्चा-संवाद नहीं हो पा रहा हैं।
सदन में व्यवधान और शोरगुल की समस्या की और इशारा करते हुए श्री बिरला ने कहा कि चूंकि जनप्रतिनिधि सीधे तौर पर जनता से जुड़े होते हैं और उनके अभावों, समस्याओं और कठिनाइयों को निकटता से समझते हैं, इसलिए विधि निर्माण में उनकी सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। इसके लिए उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सभा का बहुमूल्य समय व्यवधान और शोरगुल के कारण नष्ट न हो।
उन्होंने कहा कि इसलिए आज फिर से विधान मंडलों के अंदर अनुशासन, शालीनता और गरिमा बनाए रखने के लिए व्यापक विचार विमर्श की आवश्यकता है। समय समय पर इस संबंध में विभिन्न मंचों पर विचार विमर्श किया जाता रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि 1992, 1997 तथा 2001 में इसके लिए अलग-अलग सम्मेलनों का आयोजन किया गया था जिसमें देश-प्रदेश के पीठासीन अधिकारियों, सत्ता पक्ष और प्रति पक्ष के वरिष्ठ नेताओं ने विधान मंडलों में अनुशासन, शालीनता और सदन की गरिमा को बनाए रखने के लिए व्यापक चर्चा और संवाद किए थे और कुछ प्रस्ताव और संकल्प भी पारित किए थे।
उन्होंने कहा कि इसका तात्पर्य यह नहीं है कि सदन में विरोध, मतभेद, असहमति नहीं हो। वास्तव में, विरोध, मतभेद, सहमति-असहमति, तर्क-वितर्क, वाद-विवाद और मतांतर हमारे लोकतंत्र की विशेषता है। इनसे हमारा लोकतंत्र और अधिक समृद्ध और जीवंत हुआ है। परंतु यह आवश्यक है कि विरोध गरिमामय हो और संसदीय मर्यादाओं के अनुरूप हो। सभा में वाद-विवाद और विरोध के दौरान एक-दूसरे के प्रति शिष्टाचार, आदर और सम्मान बना रहना चाहिए। जनप्रतिनिधियों को सदन के भीतर या बाहर ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जो संसदीय लोकतंत्र की कार्यक्षमता और उसकी गरिमा को कम करे।
इस अवसर पर श्री बिरला ने पूर्व मुख्य मंत्री बी एस येदयुरप्पा को उत्कृष्ट विधायक पृरुस्कार से सम्मानित किया।
इस अवसर पर कर्नाटक विधान सभा के अध्यक्ष श्री वी.एस. कागेरी, कर्नाटक विधान परिषद के सभापति श्री बसवराज होरट्टी, कर्नाटक के मुख्यमंत्री श्री बसवराज बोम्मई , विधान सभा एवं विधान परिषद के सदस्यगण और लोक सभा के महासचिव श्री उत्पल कुमार सिंह भी उपस्थित थे।
इससे पहले, कर्नाटक विधान सभा के अध्यक्ष श्री वी.एस. कागेरी ने कहा कि संसदीय प्रणाली के प्रक्रिया और नियमों के अनुसार सत्तादल और विपक्षी दलों को सदन की समय सीमा के भीतर अपनी जिम्मेदारियों को निभाना चाहिए और सत्ताधारी दल को नई सलाह देनी चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि सत्ताधारी दल को केवल नागरिकों के हितों के प्रति समर्पित रहना चाहिए। अपने भाषण में श्री कागेरी ने आगे कहा कि यह एक भ्रम यह है कि सदन के सदस्यों के पास सरकार की कमियों से संबंधित मुद्दों को उठाने के लिए पर्याप्त समय नहीं है। उन्होंने कहा कि सदन की प्रक्रिया के नियमों का पालन करके इस जिम्मेदारी को भली भांति पूरा किया जा सकता है । कार्यपालिका की जवाबदेही के विषय में उन्होंने कहा कि विधायकों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे सरकार से प्रभावी सवाल करें और उचित उत्तर प्राप्त करें। उन्होंने विशेष रूप से कार्यपालिका की वित्तीय जिम्मेदारी सुनिश्चित करने, सदन के समय के सदुपयोग, मीडिया द्वारा रचनात्मक सहयोग पर बल दिया।
अपने भाषण में कर्नाटक विधान परिषद के सभापति श्री बसवराज होरट्टी ने विचार व्यक्त किया कि लोकतंत्र का मूल उद्देश्य यह है कि सभी को समानता का अधिकार मिले और सभी के हित के लिए काम किया जाए। उन्होंने कहा कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए विधान मंडलों में लोकतांत्रिक माध्यम से कार्य हो और ऐसे कानून बनाए जाएं जिनसे लोगों की मदद की जा सके। उन्होंने जोर देकर कहा कि विधेयकों को पारित करते समय यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि जनप्रतिनिधि लोगों की भावनाओं और आकांक्षाओं का सम्मान करें। उन्होंने कहा कि विधानमंडल धर्म, रंग, जाति जैसे भेद के बिना सब को बोलने का अधिकार देते हैं। अतः यह जनप्रतिनिधियों का कर्तव्य है कि वह सदन के कार्यक्रम के दौरान अपने व्यवहार में उदारता का भाव दिखाएं।
युवा पीढ़ी को राजनीति में अधिक अवसर देने का समर्थन करते हुए श्री होरट्टी ने कहा कि इससे हमारा सार्वजनिक जीवन समृद्ध होगा। उन्होंने यह भी विश्वास व्यक्त किया कि सभी जनप्रतिनिधि मिलकर राष्ट्र निर्माण के कार्य हेतु युवा वर्ग का नेतृत्व करेंगे।