मुंबई ; 28 जनवरी : 84वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन (एआईपीओसी) में समापन भाषण देते हुए उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि एक सशक्त लोकतंत्र न केवल ठोस सिद्धांतों पर बल्कि नेताओं और उनकी प्रतिबद्धता पर भी निर्भर करता है। श्री धनखड़ ने कहा कि पीठासीन अधिकारी लोकतांत्रिक स्तंभों के संरक्षक हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि विधायी प्रक्रिया सार्थक, जवाबदेह, प्रभावी और पारदर्शी हो और आम जनता की भावनाओं को मुखरित करे । लोकतांत्रिक सिद्धांतों को मजबूत करने में क्षमता निर्माण के महत्व का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि जमीनी स्तर की पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों के सदस्यों के क्षमता निर्माण से हमारे देश के जीवंत और प्राचीन लोकतांत्रिक स्वरूप को मजबूत करने में मदद मिलती है।
इसके अलावा, उन्होंने सभी प्रतिभागियों को 5 संकल्पों अर्थात् (i) विधायी निकायों के प्रभावी कामकाज के लिए संकल्प; (ii) जमीनी स्तर की पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों की क्षमता निर्माण का संकल्प; (iii) उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाने और उन्हें बढ़ावा देने का संकल्प; (iv) कार्यपालिका की जवाबदेही लागू करने में प्रभावशीलता में सुधार करने का संकल्प और (v) “वन नेशन वन लेजिस्लेटिव प्लेटफॉर्म” बनाने के संकल्प को अपनाने के लिए बधाई दी । उन्होंने विचार व्यक्त किया कि ये संकल्प भारत@2047 की मजबूत नींव रखेंगे। उन्होंने सभी पीठासीन अधिकारियों से पहली बार निर्वाचित विधायकों को प्रोत्साहित करने का आग्रह किया।
महाराष्ट्र के राज्यपाल, श्री रमेश बैस; लोक सभा अध्यक्ष, श्री ओम बिरला; राज्य सभा के उपसभापति, श्री हरिवंश; महाराष्ट्र विधान सभा के अध्यक्ष, श्री राहुल नार्वेकर; और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री, श्री देवेन्द्र फड़नवीस समापन समारोह में उपस्थित थे. सम्मेलन में 16 अध्यक्षों सहित 18 राज्यों के 26 पीठासीन अधिकारियों ने भाग लिया। बाद में श्री बिरला ने मीडिया से बातचीत भी की।
विधानमंडलों में अव्यवस्था की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि विधानमंडलों में अनुशासन और शालीनता की कमी लोगों के लिए गहरी चिंता और अलग-अलग कालखंड में चर्चा का विषय रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे विधानमंडलों में अनुशासनहीनता और अशोभनीय आचरण की घटनाएं बढ़ रही हैं और बड़े पैमाने पर उन सब लोगों को प्रभावित कर रही हैं जिनकी सेवा के लिए हम सब यहाँ आए हैं। यह स्थिति परेशान करने वाली है और इससे बाहर निकलने का रास्ता खोजने के लिए सभी हितधारकों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए । उन्होंने यह भी कहा कि इतने बड़े पैमाने पर गिरावट की स्थिति से विधानमंडल अप्रासंगिक हो रहे हैं ।
विधानमंडलों और जन प्रतिनिधियों की भूमिका पर आगे अपने विचार व्यक्त करती हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि विधानमंडल सभी प्रकार के विचारों की अभिव्यक्ति के लिए सबसे प्रभावशाली मंच है। इसलिए, दूसरों के दृष्टिकोण को समझने की जरूरत है । श्री धनखड़ ने कहा कि मतभेद के बिंदुओं पर विचार भी आवश्यक है।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए लोक सभा अध्यक्ष, श्री ओम बिरला ने जानकारी दी कि इस दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान पीठासीन अधिकारियों ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को जनता से जोड़ने और उन्हें अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने की कार्य योजनाओं पर चर्चा की। श्री बिरला ने कहा कि लोकतंत्र जनता के विश्वास और भरोसे पर चलता है,, इसलिए यह लोकतांत्रिक संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि वे अपनी कार्यशैली में आवश्यक बदलाव लाएँ और यदि आवश्यक हो तो नियमों में संशोधन भी करें ताकि इन संस्थाओं में जनता का विश्वास बढ़े।
विधायी निकायों की सर्वोत्तम प्रथाओं का उल्लेख करते हुए, श्री बिरला ने केंद्र, राज्य और जमीनी स्तर की लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच संवाद स्थापित करने के सुझाव की सराहना की। इस संबंध में उन्होंने लोक सभा द्वारा आयोजित आउटरीच कार्यक्रम का उल्लेख किया और सुझाव दिया कि राज्य विधानमंडलों को भी इसी तरह के कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए।
विधानमंडलों को अधिक प्रभावी और कुशल बनाने के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग की पुरजोर सिफारिश करते हुए, श्री बिरला ने कहा कि लोक सभा को एक मॉडल आईटी नीति तैयार करने और उन्हें राज्य विधायी निकायों के साथ साझा करने के लिए कुछ राज्य विधानमंडलों से सुझाव प्राप्त हुए हैं। उन्होंने आगे बताया कि इस सुझाव पर विस्तार से चर्चा की जाएगी और उचित कार्रवाई की जाएगी। अपने वीडियो संबोधन में विधानमंडलों को पेपरलेस बनाने के संबंध में प्रधान मंत्री, श्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए, श्री बिरला ने जानकारी दी कि लोक सभा ने डिजिटल संसद के माध्यम से इस दिशा में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। श्री बिरला ने इस बात पर जोर दिया कि प्रौद्योगिकी का मार्ग भविष्य का मार्ग है और हमें जल्द से जल्द प्रौद्योगिकी में दक्षता हासिल करनी चाहिए । प्रधानमंत्री का “वन नेशन वन लेजिस्लेटिव प्लेटफॉर्म” का सपना 2024 में साकार होगा।
विधानमंडलों के कामकाज में नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग से उत्पन्न चुनौतियों का उल्लेख करते हुए, श्री बिरला ने पीठासीन अधिकारी द्वारा कार्यवाही में से निकाले गए अंशों के प्रसारण के बारे में बात की और कहा कि इस संबंध में एक कार्य योजना बनाए जाने की आवश्यकता है। श्री बिरला ने राय दी कि सोशल मीडिया सहित मीडिया को संसदीय कार्यवाही के प्रामाणिक रिकॉर्ड की रिपोर्ट करनी चाहिए।
इस बात का उल्लेख करते हुए कि विधानमंडल निर्बाध चर्चा के मंच हैं, श्री बिरला ने इस बात पर जोर दिया कि विधानमंडलों में बहस अधिक और व्यवधान कम होना चाहिए। श्री बिरला ने यह भी कहा कि विधानमंडलों को अधिक उत्पादकता के साथ कार्य करते हुए लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर गुणात्मक चर्चा करनी चाहिए । उन्होंने पीठासीन अधिकारियों से ऐसी कार्ययोजना और रणनीति तैयार करने का आग्रह किया जिससे विधानमंडलों का समय बर्बाद न हो, और सदन के समय का उपयोग ऐसे वाद-विवाद और चर्चा में किया जा सके जिससे जनता का कल्याण हो । श्री बिरला ने जोर देकर कहा कि जबरन और नियोजित स्थगन की घटनाएं और व्यवधानों के कारण संसद के समय की हानि लोकतंत्र के सभी हितधारकों के लिए चिंता का विषय है। ऐसी घटनाओं से सदन की गरिमा कम होती है और जनता के बीच नकारात्मक छवि बनती है।
श्री बिरला ने यह जानकारी भी दी कि दल-बदल विरोधी कानून की समीक्षा के लिए महाराष्ट्र विधानस भा के अध्यक्ष, अधिवक्ता राहुल नार्वेकर की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाएगी।
सम्मेलन की दूसरी एजेंडा मद अर्थाट समिति प्रणाली को मजबूत करने के बारे में बात करते हुए, श्री बिरला ने कहा कि संसदीय समितियां संसदीय प्रक्रियाओं की जीवनधारा हैं और उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाकर, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे प्रभावी शासन और कार्यपालिका की निगरानी के लिए शक्तिशाली साधन बनें ।
आगामी संसद सत्र की तैयारियों के संबंध में श्री बिरला ने बताया कि संसद परिसर की मजबूत और अचूक सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। श्री बिरला ने यह भी कहा कि सुरक्षा व्यवस्था में परिसर में हो सकने वाले खतरे को दूर करने के साथ ही सदस्यों की गरिमा को भी ध्यान में रखा जाएगा।
लोक सभा अध्यक्ष ने सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल और मुख्यमंत्री तथा महाराष्ट्र विधान सभा अध्यक्ष को धन्यवाद दिया।
महाराष्ट्र के राज्यपाल, श्री रमेश बैस ने अपने संबोधन में अपने लगभग तीन दशक लंबे राजनीतिक जीवन की बात करते हुए एक संसद सदस्य के रूप में अपने अनुभवों को साझा किया । उन्होंने कहा कि भारतीय गणतंत्र के 75वें वर्ष में देश उन समृद्ध लोकतांत्रिक मूल्यों को विशिष्टता से दर्शाया रहा है जो हमारे जीवन का अंतरंग हिस्सा रहे हैं। राज्यपाल ने महाराष्ट्र के दिग्गज नेताओं की भी सराहना की जिन्होंने देश में राजनीतिक संवाद को उन्नत करने और बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने विधानमंडलों में सूचना प्रौद्योगिकी के महत्व पर जोर दिया और पीठासीन अधिकारियों से विधायी निकायों में लोगों के विश्वास को मजबूत करने का आह्वान किया।
राज्य सभा के उपसभापति, श्री हरिवंश ने भी इस अवसर पर अपनी बात रखी और सम्मेलन की मेजबानी के लिए महाराष्ट्र विधानमंडल को धन्यवाद दिया, जिससे पीठासीन अधिकारियों को वर्तमान समय में विधानमंडलों के सामने आने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा और विचार-विमर्श करने के लिए एक मंच मिला।
महाराष्ट्र विधान सभा के अध्यक्ष श्री राहुल नार्वेकर ने प्रतिनिधियों का स्वागत किया और महाराष्ट्र विधान सभा को सम्मेलन की मेजबानी का अवसर देने के लिए श्री बिरला को धन्यवाद दिया। उन्होंने पिछले दो दिनों में हुई सार्थक चर्चाओं पर संतोष व्यक्त किया और आशा व्यक्त की कि इसके फलस्वरूप न केवल संसदीय लोकतंत्र मजबूत होगा बल्कि समाज के अंतिम व्यक्ति को भी लाभ होगा। उन्होंने कहा कि इस तरह का संवाद वास्तव में प्रातिनिधिक प्रणाली का प्रतीक है और विश्वास व्यक्त किया कि इस सम्मेलन के परिणाम देश के लोगों को शीघ्र ही स्पष्ट रूप से दिखाई देंगे।
महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री, श्री देवेन्द्र फडनवीस ने भारत की लोकतांत्रिक परंपरा में पीठासीन अधिकारियों की भूमिका की सराहना की और विचार व्यक्त किया कि हालांकि पीठासीन अधिकारी की जिम्मेदारियाँ बहुत कठिन होती हैं, परंतु वे इस कसौटी पर खरे उतरते हैं और अपने ज्ञान और कौशल के माध्यम से प्रगतिशील लोकतंत्र का मार्ग प्रशस्त करने के लिए सदन में अनुशासन और शालीनता सुनिश्चित करते हैं।
महाराष्ट्र विधान परिषद की उपसभापति, डॉ. नीलम गोरहे ने 84वें एआईपीओसी के समापन सत्र में धन्यवाद ज्ञापित दिया। उन्होंने सम्मेलन के सफल आयोजन पर संतोष व्यक्त किया।
इस दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान निम्नलिखित विषयों पर चर्चा की गई:
I लोकतांत्रिक संस्थाओं में लोगों का विश्वास मजबूत करने के लिए – संसद और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के विधानमंडलों में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने की आवश्यकता; और
Ii समिति-व्यवस्था को अधिक उद्देश्यपूर्ण एवं प्रभावी कैसे बनाया जाये।
सम्मेलन के समापन पर निम्नलिखित संकल्प स्वीकार किए गए :
संकल्प 1
संसद और राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों के विधानमंडलों से आग्रह करता है कि वे वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप एवं हमारे संविधान के प्रावधानों एवं उसकी भावना के अनुसार विधायी निकायों के प्रभावी कार्यकरण के लिए अपने विधानमंडलों की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों की समीक्षा करें और उनमें आवश्यक संशोधन करें।
संकल्प 2
हमारे देश के जीवंत और प्राचीन लोकतांत्रिक परंपराओं को और अधिक सशक्त करने के लिए संसद/राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों के विधानमंडल जमीनी स्तर की लोकतान्त्रिक संस्थाओं, अर्थात, पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों के क्षमता निर्माण हेतु प्रभावी कदम उठायें।
संकल्प 3
भारत के विधायी निकाय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) सहित नई प्रौद्योगिकियों को अपनायें ताकि विधानमंडलों की दक्षता, पारदर्शिता और उत्पादकता में वृद्धि हो और उनके कार्यकरण में जन भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सके।
संकल्प 4
विधानमंडलों की समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका के दृष्टिगत, एआईपीओसी संकल्प लेती है कि कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए समितियों के कार्यकरण को और प्रभावी बनाने के सभी संभव प्रयास किये जाएं।
संकल्प – 5
एआईपीओसी संकल्प लेती है कि विधायिकाओं के बीच परस्पर संसाधनों और अनुभवों को साझा करने और नागरिकों को विधायिकाओं के साथ प्रभावी रूप से जोड़ने के उद्देश्य से “वन नेशन वन लेजिस्लेटिव प्लेटफॉर्म” के क्रियान्वयन हेतु सक्रिय कदम उठाए जाएंगे।