भारत के युवाओं को अपने मूल कर्तव्यों की पूर्ति के लिए स्वयं को पुनःसमर्पित करना चाहिए: ओम बिरला

नई दिल्ली: लोकसभा अध्यक्ष, ओम बिरला ने आज संसद के केन्द्रीय कक्ष में भारतीय संसदीय समूह के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय विधि छात्र सम्मेलन की अध्यक्षता की । केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री, श्री किरेन रिजीजू; राज्य सभा के उप सभापति, श्री हरिवंश; कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय समिति के सभापति, श्री सुशील कुमार मोदी; और विदेश मामलों संबंधी स्थायी समिति के सभापति, श्री पी.पी. चौधरी भी इस सम्मेलन में शामिल हुए ।

इस अवसर पर श्री बिरला ने शक्तियों के पृथक्करण के संवैधानिक प्रावधान के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने परिकल्पना की थी कि राज्य के सभी अंग देशवासियों का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करेंगे। राज्य के प्रत्येक अंग को दूसरों के क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किए बिना संवैधानिक अधिदेशों के भीतर रहकर कार्य करना चाहिए। श्री बिरला ने कहा कि कानून जन कल्याण के लिए बनाए जाते हैं और राज्य के हर अंग का यह प्रयास होना चाहिए कि वह जन कल्याण को बढ़ावा दे ।

नागरिकों के कर्तव्यों पर जोर देते हुए श्री बिरला ने कहा कि हमारा संविधान अधिकारों और कर्तव्यों का अनूठा मिश्रण है। आज जब हम स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने का समारोह माना रहे हैं, भारत के युवाओं को अपने मूल कर्तव्यों की पूर्ति के लिए राष्ट्र हित में स्वयं को पुनःसमर्पित करना चाहिए। यदि हम राष्ट्रीय लक्ष्यों और संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता और पूरी निष्ठा और लगन के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं, तो हमारा राष्ट्र प्रगति के पथ पर तेजी से आगे बढ़ेगा और हमारा लोकतंत्र अधिक समृद्ध और परिपक्व हो जाएगा।

श्री बिरला ने यह भी कहा कि आज जब दुनिया के सभी देश प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए एक दूसरे के साथ जुडते चले जा रहे हैं ,ऐसे में हमें जन कल्याण के उद्देश्य से सूचना और संचार साधनों का उपयोग और अधिक सक्रियता से करना चाहिए । अध्यक्ष महोदय ने आगे कहा कि ‘एक राष्ट्र-एक मंच’ के प्रस्ताव के अंतर्गत देश भर में सभी विधायी प्रक्रियाओं को एक मंच पर लाने के लिए नवीनतम सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित नवीन साधनों के उपयोग सहित सभी कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नई तकनीक पर आधारित एक नए भारत का आविर्भाव हो रहा है और सभी देशवासियों को नवीनतम तकनीकों का उपयोग करते हुए सार्थक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की दिशा में कार्य करना चाहिए। श्री बिरला ने कहा कि जैसे-जैसे भारत का विकास हो रहा है, इसके साथ ही दुनिया का विकास भी हो रहा है ।

केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री, श्री किरेन रिजीजू ने शक्तियों के पृथक्करण से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों के बारे में बात की और कहा कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था का संतुलन बहुत नाजुक है , इसलिए राज्य के सभी अंगों को संविधान द्वारा परिभाषित सीमाओं के भीतर रहकर कार्य करना चाहिए। किसी भी अंग को दूसरे की शक्तियों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान सर्वोच्च है, लेकिन संप्रभुता लोगों के पास है। मंत्री जी ने कहा कि संविधान जनाभिव्यक्ति का प्रतीक है। भारतीय लोकतंत्र के वैश्विक महत्व के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए, श्री रिजीजू ने कहा कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते भारत विश्व की लोकतांत्रिक विरासत के लिए अति महत्वपूर्ण है।

राज्य सभा के उपसभापति, श्री हरिवंश ने अपने संबोधन में कहा कि संविधान सभा वाद-विवाद जानकारी का समृद्ध भंडार है। उन्होंने संविधान निर्माण की प्रक्रिया में गुमनाम नायकों और महिलाओं द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला। श्री हरिवंश ने राज्य के तीनों अंगों के बीच सूक्ष्म संतुलन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रत्येक अंग को एक दूसरे की शक्तियों और कार्यों का सम्मान करना चाहिए। उपसभापति जी ने युवा छात्र समुदाय से अपने कर्तव्यों पर ध्यान देने और कानूनी सहायता प्रदान करने का आग्रह किया जिससे लोगों को न्याय दिलाने में मदद मिलेगी । उचित समय पर कानून बनाए जाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, श्री हरिवंश ने कहा कि विलंबित कानूनों से सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र प्रभावित होते है। कानूनों को उचित समय पर बनाया जाना चाहिए, नियमित रूप से इनकी समीक्षा की जानी चाहिए और अप्रचलित और बेमानी होने पर इन्हें समाप्त कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को शासन का अभिन्न अंग बनाने का आह्वान भी किया।

राज्य सभा सदस्य और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष, डॉ. विनय पी. सहस्रबुद्धे ने स्वागत भाषण दिया।

लोक सभा के महासचिव, श्री उत्पल कुमार सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया ।

बाद में, विदेश मामलों और कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय की स्थायी समितियों के सभापतियों द्वारा “भारत के संविधान में निहित शक्तियों के पृथक्करण” विषय पर पूर्ण सत्र आयोजित किए गए।