नई दिल्ली (संसद भवन) : लोक सभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने आज संसद भवन एनेक्सी में 81वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन (AIPOC) का उद्घाटन किया।
इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन (आईपीयू) के अध्यक्ष श्री डुआर्टे पाचेको, ऑस्ट्रिया की राष्ट्रीय परिषद के अध्यक्ष श्री वोल्फगैंग सोबोटका, गयाना की संसद के अध्यक्ष श्री मंजूर नादिर, मालदीव के पीपुल्स मजलिस के अध्यक्ष श्री मोहम्मद नशीद, मंगोलिया के स्टेट ग्रेट हुरल के अध्यक्ष श्री गोम्बोजाविन ज़ंदनशतर, नामीबिया की नेशनल असेंबली के अध्यक्ष प्रो. पीटर काटजाविवी, श्रीलंका की संसद के अध्यक्ष श्री महिंदा यापा अबेवर्धना, ज़िम्बाब्वे की नेशनल असेंबली के अध्यक्ष श्री जैकब फ्रांसिस मुडेंडा, मॉरीशस की संसद के उपाध्यक्ष श्री नाज़ुरली मोहम्मद जाहिद ने इस अवसर की शोभा बढ़ाई और सम्मेलन में अपने विचार साझा किए। भूटान की नेशनल असेंबली के उपाध्यक्ष, केन्या के संसद सदस्य और रूस के संसद सदस्य सहित अन्य विदेशी गणमान्य व्यक्ति भी इस चर्चा में उपस्थित थे।
प्रारंभ में आईपीयू के अध्यक्ष श्री डुआर्टे पाचेको ने अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के अवसर पर सभी को बधाई दी। उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र समावेशी है और दुनिया के लिए एक उदाहरण है, उन्होंने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के लिए बधाई भी दी। श्री वोल्फगैंग सोबोटका ने अपने संबोधन में कहा कि संसद लोकतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। श्री मंजूर नादिर ने भारत की विविधता और गतिशीलता की प्रशंसा की। श्री नशीद ने भारत को क्षेत्र में लोकतंत्र का एक रोशन उदाहरण बताया और लोकतंत्र को मजबूत करने के महत्व के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में, अलोकतांत्रिक ताकतों ने हिंसा के माध्यम से अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा कर लिया है, जो दक्षिण एशिया के पूरे क्षेत्र के लिए असफलता है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार, लोकतंत्र, स्वतंत्रता आदि सार्वभौमिक मूल्य हैं जिनकी रक्षा सभी को करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को कायम रखने में संसद की अहम भूमिका होती है। श्री अभयवर्धना ने कहा कि पारदर्शिता और जवाबदेही लोकतंत्र की आधारशिला है। श्री मुडेंडा ने डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को स्मरण करते हुए कहा कि हमें डॉ. अम्बेडकर के दिखाए रास्ते पर चलना चाहिए, उन्होंने यह भी कहा कि पीएम मोदी ने कहा था कि “सुशासन केवल दर्शन नहीं रह सकता है।” इसे लोगों को विकास के केंद्र में रखना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि विश्व स्तर पर महामारी टीकाकरण प्रक्रिया को लोकतंत्र और मानवाधिकारों के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश, विदेशी संसदों के आठ पीठासीन अधिकारियों और भारत के विधानमंडलों के पीठासीन अधिकारियों ने भी सम्मेलन में भाग लिया। इस अवसर पर लोक सभा और राज्य सभा के महासचिव श्री उत्पल कुमार सिंह और डॉ. पी.पी.के. रामाचार्युलु भी मौजूद थे
इस अवसर पर श्री बिरला ने कहा कि विधान मंडलों की विश्वसनीयता उनके सदस्यों की भूमिका और आचरण से जुड़ी होती है और इसीलिए उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे विधान मंडल के अंदर और बाहर शालीनता के उच्चतम मानदंडों का पालन करें। उन्होंने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि हाल के वर्षों में जनप्रतिनिधियों के अशोभनीय व्यवहार की घटनाएं बढ़ी हैं, जिससे इन संस्थाओं की छवि धूमिल होती है।
श्री बिरला ने सचेत किया कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि होने के नाते सदस्य का एक प्रतिष्ठित दर्जा होता है। उन्होंने कहा कि जहां सदस्यों को अपने संसदीय कर्तव्यों को निर्बाध रूप से संपन्न करने के लिए विशेषाधिकार दिए गए हैं, वहीं इन विशेषाधिकारों के साथ कुछ जिम्मेदारियां भी जुड़ी हुई हैं। उन्होंने आगाह किया कि अब उचित समय आ गया है कि व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से जनप्रतिनिधि के आचरण के मानदंडों के बारे में विचार और मंथन हो।
यह विचार व्यक्त करते हुए कि सभा का सुचारू रूप से संचालन लोकतंत्र के विकास में सहायक होता है, उन्होंने सुझाव दिया कि विधान मंडलों की सभाओं को नियम और परंपराओं के अनुरूप, जनहित में प्रभावी ढंग से कार्य करना चाहिए ताकि सभा के प्रति जनता में निष्ठा और विश्वास पैदा हो।
उन्होंने जोर देकर कहा कि संसद और विधान मंडलों में अनुशासन और शालीनता के विषय पर गंभीरता से विचार करना होगा। उन्होंने याद दिलाया कि इस विषय पर वर्ष 1992, 1997 और 2001 में अलग-अलग सम्मेलन आयोजित किए गए थे। उन्होंने कहा कि उन सम्मेलनों में लिए गए संकल्पों एवं निर्णयों के क्रियान्वयन के संबंध में पीठासीन अधिकारियों, सभी दलों के नेताओं और सचेतकों द्वारा सामूहिक और समन्वित प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि वर्ष 2022 के अगले सम्मेलन में ‘’लोकतांत्रिक संस्थाओं में DISCIPLINE और DECORUM MAINTAIN करने तथा इन संस्थाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो।
श्री बिरला ने सुझाव दिया कि आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर देश भर में सांसदों और विधायकों के एक बड़े सम्मेलन का आयोजन होना चाहिए। साथ ही आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर 75 वर्ष से ऊपर के वर्तमान एवं भूतपूर्व सांसदों तथा विधायकों का सम्मेलन अपने अपने राज्यों में आयोजित हो।
उन्होंने आगे बताया कि आगामी 4-5 दिसम्बर, 2021 को लोक लेखा समिति का शताब्दी वर्ष समारोह आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। इसमें लोक सभा एवं राज्य सभा के वर्तमान एवं भूतपूर्व पीठासीन अधिकारियों, राज्य विधान मंडलों के अध्यक्षों, संसद तथा सभी राज्यों के विधान मंडलों की लोक लेखा समितियों के सभापति, राष्ट्रमंडल देशों की देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों तथा अन्य गणमान्य अतिथियों को भी आमंत्रित किया जा रहा है।
श्री बिरला ने आगे सुझाव दिया कि ‘’लोकतांत्रिक संस्थाओं को सुदृढ करने में महिला एवं युवा सांसदों और विधायकों की भूमिका’ विषय पर कार्यक्रम आयोजित हो और साथ ही अलग अलग विधानमंडल अपने राज्यों में ग्राम पंचायतों और नगरीय निकायों की लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मेलन आयोजित करें जिसमें लोकतांत्रिक संस्थाओं के सुदृढीकरण एवं उनकी कार्यपालिका के सुदृढीकरण की कार्य योजना पर चर्चा हो।
इस अवसर पर सभी उपस्थित पीठासीन अधिकारियों ने निम्नलिखिन संकल्प लिया:
‘आइए, हम इस ऐतिहासिक अवसर पर संकल्प लेते हैं कि हम सब मिलकर भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करेंगे, अपनी लोकतांत्रिक संस्थाओं को आदर्श संस्थाएं बनाएंगे, देश-विदेश में लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए काम करेंगे और हम अपने राजनीतिक लोकतंत्र को आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र में रूपांतरित करेंगे। ‘